कविता -"कैसे"/ Kaise_Hindi Poetry_Ankit AKP _2018
कविता शीर्षक - कैसे |
कि क्या हूँ मैं
कैसे इस जहान में
अपनी पहचान बनाऊँ मैं
कैसे उस मंजिल तक जाऊँ
जो लक्ष्य है मेरी जिन्दगी का
कुछ तो खास है मुझमें
कैसे यह खुद को विश्वास दिलाऊँ;
हर राह पर हो ईश्वर साथ मेरे
कैसे यह यह उम्मीद जताऊँ मैं
जिस भी राह पर जाऊँ,
वहाँ कदमों के निशान हो मेरे
कैसे यह ख्वाब सजाऊँ मैं
कभी मैं भी परिन्दा बनकर,
आसमान की ऊँची उड़ान भरूँ
कैसे यह ख़्वाहिश जताऊँ मैं
हाथ की लकीरें किस्मत और,
बंद मुट्ठी ताकत है मेरी
कैसे इस तरह आत्मविश्वास बढ़ाऊँ मैं;
आखिर कैसे अपने अन्दर की,
उस काबिलियत को पहचानुँ मैं
कि कभी भी मेरे मन में,
'कैसे' शब्द का ख्याल न आए
क्योंकि 'कैसे-कैसे' कहकर बस,
बहुत कर लिए खुद से सवाल मैंने
लेकिन कैसे भी था करना अब,
अपने से ये 'कैसे' दूर
क्योंकि अब मुझे अपने आप को,
सिर्फ जवाब देने थे !
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