Love Poetry "वो, उसका मुखड़ा और मेरा इश्क / Woh, Uska Mukhda aur Mera Ishq"_2018_Ankit AKP
Woh, uska mukhda aur mera ishq |
गीतों का सुर बांधती है
गले में जैसे मेरे,
सरस्वती बन विराजती है;
मेरी हर बातों, हर शब्दों में मेरे,
बस वही मिठास लाती है
एक वही तो है जो बोली से मेरे,
मेरी अलग ही पहचान कराती है
और लोगों में मुझको खास बनाती है;
वो कुदरत का एहसास कराती है,
जिन्दगी जन्नत कर जाती है
जिन्दगी के हर दुखड़ाें में वो,
खुशी का एक मुखड़ा दिखलाती है
वो मुखड़ा जिसके सामने हर दुखड़ा,
जिन्दगी मुस्कुराकर गाती है
जिसके सामने हर तकलीफ का एहसास भी,
जिन्दगी खुशी-खुशी कर जाती है
ये मुखड़ा ही तो है जिसके एहसास मात्र से,
जिन्दगी खुशनुमा बन जाती है;
अब क्या बताऊं वो कैसी है,
जिसका ये मुखड़ा है
कि जब से उसको देखा है,
मैं अपना सुध-बुध भूल गया हूँ
उसके मुखड़े का नूर देखकर,
मैं अपना ग़ुरूर भूल गया हूँ
उसके रूप का स्वरूप देखकर,
मैं अपना कुरूप भूल गया हूँ
जिसकी आँखो की मस्ती में छनकर,
मैं दुनिया भूल गया हूँ;
बस भूल गया हूँ मैं सब कुछ,
अपने से जुड़ी सारी बातें भूल गया हूँ
सिवाय उसके जिससे जुड़ी हर बातों का,
मैं जिक्र हो गया हूँ
जिसकी लहलहाती जुल्फों का,
मैं स्पर्श हो गया हूँ
और इस स्पर्श के एहसास का,
मैं इश्क-ए-परिन्दा हो गया हूँ
मैं उसका पूरा आशिक हो गया हूँ;
मेरी आस, मेरी बात, मेरे बोल, मेरे शब्द
मेरी पहचान, मेरी खुशी, मेरी जिन्दगी,मेरा एहसास
और क्या बचा, सब तो उसी का हो गया है
सिवाय उसके इस एहसास के,
कि उससे मेरा इश्क मेरी जिन्दगी का अक्स हो गया है;
लेकिन मुझे बस इसी एहसास में रहने दो,
उसकी खूबसूरत आँखों में मेरी नजर रहने दो,
मेरी दिल की धड़कनों में उसी का एहसास रहने दो ,
मेरे होंठों पर बस उसी का नाम रहने दो
कि मुझे उसी के इश्क में रहने दो... !
_Ankit Kumar Panda
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