जिन्दगी हमसे नाराज बैठी है / Zindagi Humse Naraj Baithi Hai_Hindi Poetry_Ankit AKP
नाराज बैठी है
ये जिन्दगी हमसे,
उस पार बैठी है;
ये जिन्दगी है
कहीं हंसने,
तो कहीं रोने बैठी है
कहीं माँ के आँचल में सोने,
तो कहीं कब्र में लेटने बैठी है;
ये जिन्दगी रंगकर बैठी है
कहीं इन्द्रधनुष के सात रंग,
तो कहीं कालिख लगाए बैठी है
ये जिन्दगी एक सिक्के के,
दो पहलू में बैठी है
किस्मत है कि कहीं जीतने,
तो कहीं हारने बैठी है
ये जिन्दगी तो रंगमंच सजाए बैठी है
कहीं मिसाल बनने,
तो कहीं मजाक बनने बैठी है
ये जिन्दगी,
तो आँख बनकर बैठी है
कहीं हकीकत देखने,
तो कहीं ख़्वाब देखने बैठी है
ये जिन्दगी अब,
कुरूक्षेत्र का मैदान बनकर बैठी है
कहीं युद्ध करने,
तो कहीं 'भगवत गीता' कहने बैठी है
ये जिन्दगी,
अपने कितने रूप दिखाने बैठी है.....
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You have maturity in your writing.badi sadhi hui language me likhte ho. lagta hai Puri Hindi ka tajurba ho tumhe.god bless u.
Bahut shukriya