"मेरी जिन्दगी का किस्सा /Meri Zindagi Ka Kissa"_Hindi poetry
कुछ रुका कुछ चला सा हूँ
मत पूछो किस कदर खला सा हूँ
अपने और अपनों के दरमियान फंसा सा हूँ
यूँ समझो अपने ही पंजों में कसा सा हूँ
कोई जख़्म मानो कुरेदा सा हूँ
मैं दर्द का बसा बसाया बसेरा सा हूँ
कुछ कम और कुछ ज़्यादा में मैं कुछ सा हूँ
आवाज होते हुए भी मैं चुप सा हूँ
कुछ हासिल करने वालों की कतार में मैं भी लगा सा हूँ
बचा हुआ भी कुछ मेरे हिस्से न आया, ऐसा तो ठगा सा हूँ
होते - होते न होता मैं वहीं अटका सा हूँ
मैं तो अपनी ही नजरों में खटका सा हूँ
सब आस-पास ही हैं, फिर भी सबसे जुदा सा हूँ
मेरी दुनिया की छोटी सी भूलभुलैया में ऐसे गुमशुदा सा हूँ
दिन दुनी तो रात चौगुनी, इस कदर तो सताया सा हूँ
मैं खुद की भलाई चाहने वाला बुरा साया सा हूँ
चार दिन की चाँदनी की ख़्वाहिश लिए मैं उस चाँद सा हूँ
न जाने ये ग्रहण कब हटेगा, मैं अभी तक उसी अंधेरी रात सा हूँ
खूबसूरती अब भी है, पर मैं उतरा हुआ श्रृंगार सा हूँ
मैं खुद को समानताओं में तोलने वाला किसी अलंकार सा हूँ
हाँ मैं बस ऐसा ही हूँ कि कहता फिरता मैं इस सा हूँ, मैं उस सा हूँ
दुनिया की नजरों से देखते खुद को, भूल गया मैं खुद सा हूँ
मैं ऐसा हूँ कि ज़िन्दगी के सजाए झूठे अरमान सा हूँ
बैठे - बिठाए सब मिल जाए, बस फरमाता मैं आराम सा हूँ
इतने सब के बावजूद भी मैं खुद को दिलाता यकीन सा हूँ
मेरी हर मुराद पुरी होगी, और कहता आमीन सा हूँ
चलो यकीन तो ठीक है, पर कुछ करने के नाम पर मैं शून्य सा हूँ
मंजिल भी कहाँ मुकाम तक पहुँचती, मैं अभी भी उसी शुरूआती शून्य सा हूँ
अब यूं भी नहीं कि मैंने कुछ किया नहीं, और ज़िन्दगी पर बोझ सा हूँ
ज़िन्दगी को मक़सद देने और निकल पड़ा खुद की करने खोज सा हूँ
यूं ही चलते, गिरते - बैठते अपनी राह में लड़खड़ाया सा हूँ
मैं बदस्तूर कोशिशों में अपने ही हाँथों आजमाया सा हूँ
खुद को तसल्ली देने वाला खुद के धैर्य सा हूँ
मैं दुआओं में मांगने वाली सबकी खैर सा हूँ
यूं समझो मैं जिन्दगी और अपने वजूद के बीच कोई हिज्र सा हूँ
मैं कहाँ किस हाल में हूँ, इस बात की करता फिक्र सा हूँ
अब क्या कहानी बताऊं आगे, न जाने किस किरदार सा हूँ
हिस्से में आई जिन्दगानी, उसपे भी मानो कर्जदार सा हूँ..!!
खूबसूरती अब भी है, पर मैं उतरा हुआ श्रृंगार सा हूँ
मैं खुद को समानताओं में तोलने वाला किसी अलंकार सा हूँ
हाँ मैं बस ऐसा ही हूँ कि कहता फिरता मैं इस सा हूँ, मैं उस सा हूँ
दुनिया की नजरों से देखते खुद को, भूल गया मैं खुद सा हूँ
मैं ऐसा हूँ कि ज़िन्दगी के सजाए झूठे अरमान सा हूँ
बैठे - बिठाए सब मिल जाए, बस फरमाता मैं आराम सा हूँ
इतने सब के बावजूद भी मैं खुद को दिलाता यकीन सा हूँ
मेरी हर मुराद पुरी होगी, और कहता आमीन सा हूँ
चलो यकीन तो ठीक है, पर कुछ करने के नाम पर मैं शून्य सा हूँ
मंजिल भी कहाँ मुकाम तक पहुँचती, मैं अभी भी उसी शुरूआती शून्य सा हूँ
अब यूं भी नहीं कि मैंने कुछ किया नहीं, और ज़िन्दगी पर बोझ सा हूँ
ज़िन्दगी को मक़सद देने और निकल पड़ा खुद की करने खोज सा हूँ
यूं ही चलते, गिरते - बैठते अपनी राह में लड़खड़ाया सा हूँ
मैं बदस्तूर कोशिशों में अपने ही हाँथों आजमाया सा हूँ
मंजिल दुर्लभ नहीं पर मैं सफर से अनजान सा हूँ
इंसान तो हूँ पर अब लगता है बेजान सा हूँ
ठोकरें खा-खाकर चल रहा, फिर भी मैं संभला सा हूँ
मैं दौड़ सकता हूँ, यूँ न समझो कि लंगड़ा सा हूँ
मैं अभागा हथेलियों पर बनी लकीरों पे विश्वास जैसा हूँइंसान तो हूँ पर अब लगता है बेजान सा हूँ
ठोकरें खा-खाकर चल रहा, फिर भी मैं संभला सा हूँ
मैं दौड़ सकता हूँ, यूँ न समझो कि लंगड़ा सा हूँ
हाँथों को घूरते उम्मीद भरी उन आँखों की रौशनी सा हूँ
खुद को तसल्ली देने वाला खुद के धैर्य सा हूँ
मैं दुआओं में मांगने वाली सबकी खैर सा हूँ
यूं समझो मैं जिन्दगी और अपने वजूद के बीच कोई हिज्र सा हूँ
मैं कहाँ किस हाल में हूँ, इस बात की करता फिक्र सा हूँ
अब क्या कहानी बताऊं आगे, न जाने किस किरदार सा हूँ
हिस्से में आई जिन्दगानी, उसपे भी मानो कर्जदार सा हूँ..!!
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"मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "