"दिमाग के पैदल" Hindi Kavita

"कभी -कभी होता है न कि करना कुछ और होता है, हो कुछ और जाता है,, ऐसे ही कुछ दिमाग के पैदल हो जाते हैं, और उसमें कैसी नादानी झलकती है, उसी पर कविता है "दिमाग के पैदल" 👇👇

"नजरों के बंदे हम,
दिमाग के पैदल बन जाते हैं
करना कुछ और था,
कर कुछ और जाते हैं
समझाई जो बात वो समझ गया,
पर याद करते-करते भूल जाते हैं ;
भूल से भी कोई भूल न हो जाए
इस कोशिश में रहते हैं,
पर ठहरे हम दिमाग के पैदल
बस घिसते ही रह जाते हैं
उल्टा है क्या पुल्टा है,
बस इसी में गड़बड़ कर जाते हैं
काम जो भी हाथ में आया
सब उल्टा-पुल्टा कर जाते हैं ;
दूर-दूर तक कोई पास न आया,
हमसे काेई पार न पाया
नादानी की चप्पल पहने
सरपट जब भी हमने दिमाग दौड़ाया
काम तमाम या बिगड़ा जो भी जैसा
हमने उस पर ही खासा नाम कमाया;
दिमाग के पैदल भले रहे,
पर कोशिशें पूरी कर जाते हैं
गलतियां कर-कर नादानियों सी
बस सबके दिल को भा जाते हैं..."
_'अंकित कुमार पंडा'

Thanks for reading 🙏🙏
 "मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "
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