कविता -"सूरज : जिन्दगी की पहचान"/Suraj : Jindagi ki Pehchan_Ankit AKP

"सुबह देखी थी जो पहली किरन 
ढलती शाम की अंतिम हो गई 
लोहित था, लोहित ही है
एक आने की तो एक जाने की 
बस यही वो जीवन-मरण की दास्तान हो गई,
वो सूरज तो ज़िन्दगी की पहचान हो गई ;
ज़िन्दगी की किताब के जुड़ते नये पन्नों में 
हर दिन भोर नई 
ये सूरज भी तो एक कहानी हो गई 
ज़िन्दगी की कहानी अपने समय-चक्र की 
तो सूरज पृथ्वी-चक्र की मेहरबान हो गई
हाँ! ये कहानियाँ तो, 
आदि-अनन्त की कहानी हो गई....."
_Ankit AKP [ अंकित कुमार पंडा ]

Thanks for reading 🙏 🙏
मुझे उम्मीद है कि आपको ये रचना पसन्द आई होगी!!
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