"कविता - वो बातें याद आतीं हैं ('बचपन') "


"बातें
जो पहले याद आतीं हैं
फिर हंसातीं हैं
और फिर, रुलातीं हैं
बातें 
जो बेवक्त ही 
ज़हन में आतीं हैं 
कभी हसीन लम्हों में कैद 
चेहरों पे खिली हमारी मुस्कानों को 
भूला-बिसरा बतलातीं है;
बातें 
हाँ ये बातें 
जब गुजरे वक्त की तादाद से 
ज़िन्दगी के असली मुकाम आज में आतीं हैं 
बड़ा अफ़सोस करा जातीं हैं 
पहले तो हंसी खिलखिलाती है
फिर उसी हंसी को आँख के आँसू कर जातीं हैं !!

बातें
आखिर क्या हैं ये बातें
जिनसे फूटकर ये आँसू ,
गुजरे वक्त की तस्वीर धुंधली कर जातीं हैं 
फिर सोचता हूँ -
"क्यूँ, आखिर क्यूँ 
जो बीत चुकीं, वो बातें याद आतीं हैं?"
बातें
हाँ ये बातें 
न जाने क्या है इन बातों में 
जो गुजरे वक्त के पहिए में से फिर वही किरदार लातीं हैं 
एक पूरी कहानी जैसे अतीत का चलचित्र दिखातीं हैं
देख-देख कर खुद को अपने ही किरदारों में 
फिर खुद के जिन्दगीनुमा अस्तित्व से मुखातिब करातीं हैं 
ब-कमाल थी वो ज़िन्दगी 
ये बातें जुबां से बस यही कहलवातीं हैं !!

आखिर ऐसा हो भी क्यूँ न 
ये बातें हैं ही उन सुनहरे पलों की
जिनमें नादानियाँ हैं, शैतानियाँ हैं 
और न जाने कितनी ही की गईं मनमानियाँ हैं 
छोटी-छोटी खुशियों के लिए अबोध सी बेईमानियाँ हैं 
इन बातों में बचपन के किस्से-कहानियाँ हैं 
हाँ! ये बातें हमारे बचपन की यादों की हैं 
या यूँ कहें कि ये बातें बचपन की ही हैं 
और ये जो बातें हैं, ये बस इसी बचपन की निशानियाँ हैं;
वो बचपन की मनमोहक अदाकारियाँ 
हरकतें जैसे मनभावन कलाकारियाँ
मनमौजियाँ, मनमर्जियाँ ,दिल की बातों की वो अर्जियाँ
अपनी ज़िद पूरी होने तक की वो अनचाही बेसब्रियाँ 
नटखट बचपन की हरकतें और नटखट हमारी मस्तियाँ   
वो बचपन की दुनिया हमारी, जैसे बसी बसाईं बस्तियाँ
हर आँख के तारें, हर गोद के दुलारे 
वात्सल्य-प्रेम के सागर में हम मौज करती कस्तियाँ 
उन लम्हों में कैद ये बातें, और याद आतीं स्मृतियाँ !!

स्मृतियाँ ये बचपन की,
और ये बचपन जिसकी हरेक तस्वीर 
एक एहसास है, ज़िन्दगी के नाम अनमोल ख़िताब है 
बीते लम्हों में जिए एक-एक लम्हे का हिसाब है
खुशियों का खजाना जुटाए एक खुशमिजाज़ किताब है;
जो आज बस एक इतिहास बन कर ही रह गई है 
ऐसे में ये बातें हमारी ज़िन्दगी के इतिहास के वो दिलचस्प पन्ने हैं 
जिन्हें हम बार-बार पलटते और पलटना चाहतें हैं 
हाँ ये वही पन्ने हैं, 
जिनमें बेफिक्री की जीती जागती मासूम सी ज़िन्दगी कैद है
दौड़ते-खेलते, कूदते-फांदते अल्हड़पन की ज़िन्दगी कैद है
दुनिया की दुनियादारी से परे वो बचपन की सादगी 
और हर गम से बेगानी वो सरल ज़िन्दगी कैद है 
कैद है....,
लेकिन बस ज़हन में खुशनुमा सी एक याद बनकर;
वरना ये जो बातें हैं,
जिनके कई किस्सों को याद करके दिल आज भी गुदगुदा उठता है 
वो बातें तो कब का वक्त के तख्तें से लटक चुकी हैं !!

बातें 
हाँ ये बातें 
मेरे बचपन की हैं
ये बातें हम सब के बचपन की हैं 
जो हर किसी के हिस्से आती हैं
और उतनी ही जल्दी रुख़सत भी कर जातीं हैं
उम्र की दहलीज़ पार कर, एक नए देह में ढलकर
ये बचपन की बातें हमेशा के लिए अलविदा कर जातीं हैं;
फिर भी ये बातें, ये यादें हमेशा जिन्दा रहतीं हैं 
याद बनकर दिमाग के किसी कोने में उम्र भर रहतीं हैं
बस इसी तरह एक उम्र की बातें,
उम्र भर याद आतीं हैं 
और जब भी याद आतीं हैं 
पहले होंठों पर मुस्कान लातीं हैं 
फिर अश्रुधार बन रुलातीं हैं 
पर ज़िन्दगी ये मलाल हमेशा करती है 
कि आखिर क्यूँ इस बचपन की उम्र इतनी कम होती है
फिर यही सोचकर ये आँख भी उतनी ही नम होती है !!

बातें
जो इन नम आँखों में यहीं रुक जातीं हैं 
पर बातें ख़त्म बिल्कुल नहीं होतीं 
बस आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में,
जब यही ज़िन्दगी बोझ सी लगती है
तो ज़िन्दगी में रंग भरता वो बचपन आकस्मिक ही याद आता है 
आज जब ज़िन्दगी किसी न किसी तनाव से परेशान सी रहती है
तो वो बचपन का चंचल शोख सा मन याद आता है 
आज जब जिन्दगी सच-झूठ  के फासले में,
फिक्र की तड़पन में गुजरती है 
वहीं इस लम्हें में यही ज़िन्दगी झूठ-सच से परे,
बेपरवाही की लाड़ में जीते थे 
तो वही बचपन का जीना याद आता है 
अपने विवेक से विचारों का अनुकरण करने और जीवन-धर्म निभाने में 
आज जब ज़िन्दगी जिम्मेदार हो गई है, समझदार हो गई है,
अपने कर्मा के नजदीक हो गई है 
तो अच्छे-बुरे में अन्तर सिखाता वो बचपन याद आता है !"

Thanks for reading 🙏🙏 
"मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "
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1 Comments
  • बेनामी
    बेनामी 20 मई 2020 को 11:28 am बजे

    It was just awesome!

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