"मेरा चाँद मेरा महबूब/Mera Chand Mera Mahboob"_best Hindi love poetry by Ankit Kumar Panda 2019
"आसमान में आसमान का तारा नजर आ गया
नीचे नजरें झुकीं,तो जमीं पर चाँद नजर आ गया
वो चाँद जिसकी खूबसूरती पर मेरा दिल आ गया
जिसे देख आँखों में भी जैसे नूर आ गया;
एक बार को तो धोखा हुआ,
कि वो चाँद फलक का,नीचे कैसे आ गया
पर असल सच तो कुछ यूँ था,
कि वो चाँद ही था,जो अपनी औकात पर आ गया था
क्योंकि वो,जो चाँद जमीं पर था
उसकी चमक के आगे वो चाँद फलक का,फीका नजर आ रहा था
खुद की खूबसूरती कम आंकते देख,
वो चाँद फलक का बादलों के सायें में छुपा जा रहा था
बहाना अच्छा था जो खुद का साया छुपाकर,
वो बादलों को इसका कारण बता रहा था
कह रहा था,वो तो बादलों की साजिश है
जो आज मेरी चमक कुछ धुंधली सी पड़ गई
वरना उसकी चमक के आगे ही तारें टिमटिमाते नजर आते हैं
आसमान जगमगाता नजर आता है
और ये,तुम्हारी जमीं अंधियारी रात में भी रौशन नजर आती है
बस ऐसे ही कह-कहकर वो खुद की खूबसूरती का ताना बाना दिए जा रहा था
या यूँ कहूँ कि अपनी खूबसूरती की लाज बचाए जा रहा था;
खैर! वो तो जायज डर था उस चाँद का,
कि जमीं पर जो खूबसूरत नजर आ रहा था
कहीं लोग उसे ही चाँद न मान बैठे
जो करते लोग अपने महबूब की तुलना मुझसे
कहीं उसे ही खूबसूरती का फ़लसफ़ा न मान बैठे
और मेरी खूबसूरती भूलकर उस पर ही न मुग्ध हो बैठे;
पर मेरा क्या उस चाँद से लेना,
जो दुर्लभ आसमान पे कहीं दूर है बैठा
मुझे तो बस यहीं, इसी जमीं पर है रहना,
मेरे इस चाँद के करीब,जिस पर मैं मेरा दिल हार बैठा
जिसके आने से आसमान के चाँद के लिए भले अमावस्या थी,
पर ख़ातिर हमारी आज की रात को वक़्त भी पूर्णिमा मान बैठा;
नसीब था,जो ये चाँद जमीं का बिल्कुल मेरे सामने था
चेहरे पर मासूमियत भरी सादगी और बदन टिमटिमाते तारें पहने था
जिसकी एक-एक अदाएँ मानो चन्द्रकलाएँ बनने जैसी थी
नजरों से जब नजर मिली वो पूनम की रात ऐसी थी
वो रात जब उसकी ही आब-ओ-हवा में डूब जाने जैसा था
दिल खुद ही शायर बन बैठे, उसका असर ही कुछ ऐसा था;
वो चाँद था मेरा, जिस पर न दाग था
असर ऐसा कि बेअसर पर भी आम था
जिसके कदमों पर बंधा सुर-ताल था
इर्द-गिर्द खुशबू ऐसी कि तृप्त मन का हाल था
पर अपनी खूबसूरती पर उसे बिल्कुल न गुमान था
बस यही बात उसकी, जैसे उसका ईमान था;
ये चाँद ही था मेरा, जो जमीं से इतना जुड़ा नजर आया
उधर वो चाँद फलक का,देखो रोता नजर आया
ये चाँद जमीं का जो मुझे मेरे लिए खुदा का तोहफ़ा नजर आया
बसा लूं जिसकी मुहब्बत को दिल में खुदा बनाकर,मुझे वो महबूब नजर आया
पर चाँद जो फलक का, मुझे मेरे चाँद के सामने बेबस नजर आया
सोचा...क्या ठीक है आसमान के चाँद के नाम पर ये जमीं का चाँद भी जो चाँद कहलाया?
फिर सोचा अगर मुहब्बत की ही बात है,
तो क्यूँ न उस आसमान के चाँद को चाँद ही रहने दूँ
और जमीं के चाँद को मैं अपनी महबूब कह दूँ
दोनों की ही खूबसूरती नायाब और खुदाबक्श है
क्यूँ न इस महबूब को मैं चाँद सा ही कह दूँ
और उसकी खूबसूरती को चाँद की चाँदनी कह दूँ
ऐसे ही क्यूँ न मैं उस चाँद को भी खुश कर दूँ
और साथ इस महबूब से अपने दिल का हाल भी बंया कर दूँ
उसे मेरा चाँद और उसकी मुहब्बत को मेरा खुदा कहकर,
ऐसे ही क्यूँ न धीरे से उससे अपनी इस मुहब्बत का इजहार कर दूँ ......"
_"अंकित कुमार पंडा"
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Thanks for reading 🙏🙏
"मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "
अंकित आपकी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं, क्या ये आपने खुद लिखीं हैं? या फिर इन्टरनेट के माध्यम से आपने ली हैं|
पहले तो आपका बहुत बहुत शुक्रिया पढ़ने के लिए 🙏🙏
और ये कविता मैं ही लिखता हूँ, न कि गूगल से ली है
Thanx mujhe aapki post padh kar maja aa gya me mast ho gaya aur meetha bhi aur adhik padhe isko Love shayari
Thank you so much