आजकल वो बड़ा परेशान करती है मुझे....(किस्सा -1) First Story

"AajKal Wo Bada Pareahaan Karti Hai Mujhe"

''आजकल वो बड़ा परेशान करती है मुझे...
न जाने क्या बिगाड़ा होगा मैंने उसका जो वो मेरे पीछे ही पड़ गई है. वैसे तो उसका और मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है पर जब वो एक दम से करीब आ जाती है, कसम से जान सूख जाती है. अब क्या करूं... डर जो लगता है उससे. और उस डर के आगे सारी हिम्मत भी जैसे पानी पी जाती है,साथ ही ये सुध - बुध भी कहीं और चली जाती है कि ये भी सोचा जा सके कि डर लाज़मी है या बेवजह.
अब वो मुझे डराती है या मैं ही हूँ जो उससे डरता हूँ, ये बता पाना मेरे लिए जरा मुश्किल है. पर एक बात बताना चाहूंगा - उसे देखकर न जाने ऐसा क्यूँ लगता है जैसे वो मेरे करीब आना चाहती हो. और ये सब मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हूँ,मेरे पास ठोस वजह है ये सब कहने की. दरअसल पिछले चार-पांच दिनों से मेरे साथ कुछ ऐसी चीजें हुई हैं, कुछ ऐसे दृश्य हुए हैं कि न चाहकर भी मेरा ध्यान उस पर गया. वो ध्यान जिसमें मैं उसे अपने पास आता महसूस करता हूँ, उसका मुझसे नजरें मिलाना महसूस करता हूँ और ये सब महसूस होने के साथ साथ एक एहसास और है जो मुझमें धीरे - धीरे घर कर जाता है और वो एहसास है 'डर'. पर डर से ज़्यादा वो मेरे लिए एक चिन्ता का विषय था क्योंकि वो...जो मैं महसूस कर रहा था, आम ज़िन्दगी में होने वाला कहीं न कहीं एक सामान्य दृश्य ही था और मैं उसमें अपनी ही कहानी बनाए जा रहा था कि कहीं ऐसा तो नहीं, कहीं ये तो नहीं होगा और ये सब सोचना ही मेरे लिए चिन्ता का विषय था कि आखिर मैं ये सब सोच क्यूँ रहा हूँ. पर मैं इस बात से इन्कार नहीं कर सका कि जो कुछ भी हो रहा था,वो सामान्य था.
अब वो कड़ी जिसके कारण मैं उस डर से जुड़ रहा था और आप लोग ज्यादा अनुमान लगाएं इससे पहले मैं बता दूँ कि वो जो मुझे परेशान करती है, जिससे मैं आजकल डर रहा हूँ वो और कोई नहीं बल्कि हमारी प्रजाति से बिल्कुल अलग एक बेजुबान 'छिपकली' है. हाँ...छिपकली!! वो छिपकली जो मुझे चार - पांच दिन से परेशान कर रही है, जो मेरे डर की वजह है. जानता हूँ जानकर हंसी आ रही होगी पर हम सब कितना कह ले कि हम किसी से नहीं डरते, हम बहुत हिम्मत वाले हैं पर हर किसी को किसी न किसी चीज का डर तो होता ही है. और ऐसे में कहीं कुछ ऐसे जीव - जन्तु, कीड़े - मकोड़े की बात करे तो कई लोगों को तो इनसे फोबिया होता है. ये, खास तौर पर सरीसृप वर्ग के प्राणी एक बार कहीं नंगे बदन पे सरपट दौड़ जाए तो पूरे बदन पे करंट दौड़ जाता है, पूरा बदन मानो नाच जाता हो और ये तो छिपकली है. बाकी आप लोग तो जानते ही होंगे कि एक बार लोग सांप को भले गले में लपेट ले पर छिपकली..., ना बाबा ना. वैसे भी उसकी खाल इतनी चिकनी और बेढंगी होती है कि देखकर ही हमारे हाव - भाव खुरदुरे हो जाते हैं,अरे.., मतलब वही... पसीने छूट जाते हैं.
अच्छा अब जानते हैं कि वास्तव में कहानी क्या है, आखिर हुआ क्या था. दरअसल मैं आजकल अकेले रहता हूँ और आप लोग तो जानते हैं कि अकेले बैठे हर शख़्स के मन में न जाने कैसे - कैसे ख़्याल आ जाते हैं कि पूछिए मत. कभी - कभी तो ऐसे कि वो अस्वाभाविक और अवास्तविक ख्यालों को भी पीछे छोड़ जाते हैं. खैर..! ये तो सोचने का विषय है, पर अभी..हमारा विषय मैं और वो छिपकली है जिसकी ये पूरी व्याख्यान है. वो चितकबरी छिपकली जिसकी खाल तो सफेद है पर पीठ पे कुछ हल्के - हल्के काले धब्बे भी हैं. अब आप लोगों को लग रहा होगा कि मैं कैसे कह सकता हूँ कि ये वही छिपकली होगी जो लगातार चार - पांच दिन से मुझे दिख रही है, मुझे परेशान कर रही है और वैसे भी छिपकली तो और भी होंगी ही तो ऐसे में वही छिपकली क्यों? और छिपकलियों का ऐसा तो है नहीं कि हम इंसानों की तरह हर एक का बिल्कुल अलग स्वरूप हो. वैसे तो मानता हूँ कि छिपकलियों का भी अपना अलग - अलग स्वरूप होता है पर हम इंसानों को तो वो ज्यादातर एक जैसी ही लगती हैं, तब कैसे मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि ये वही छिपकली है जो मुझे परेशान करती है. पर ये छिपकली वही है क्योंकि ये एक ही है मतलब मैं आजकल जहाँ कमरा लेकर रह रहा हूँ, वहाँ होने को तो और भी छिपकलियां हो सकती हैं, हो सकती हैं क्या होनी चाहिए पर यहाँ कुछ अजीब है. मेरे कमरे में रोज मुझे सिर्फ एक छिपकली दिखती है, और वही चितकबरी खाल वाली. अब अगर कमरे में मुझे और भी छिपकलियां दिखती तब तो पहचानने में परेशानी थी. पर कमरे में केवल एक ही छिपकली का आना और खाल व रंग भी वही तो यकीन तो लाजमी है ना कि वह वही और एक ही छिपकली है जबकि आश्चर्य की बात तो ये है कि कमरे से बाहर निकलते ही मुझे कई और छिपकलियां दिखती हैं पर न जाने कमरे में सिर्फ वही छिपकली क्यों आती है. पहले तो मैंने गौर नहीं किया,भला कौन गौर करता है कि कहीं छिपकली मुझे देख तो नहीं रही.
खैर पहला दिन बीता, दूसरा दिन बीता, तीसरा दिन बीता पर चौथा दिन मेरा अचानक ही ध्यान गया तो पिछले तीनों दिन जैसे आंखों के सामने आ गए हो कि किस तरह से ये छिपकली बार - बार मुझसे सामना कर रही है. वो पहला दिन जब दोपहर मैं बिस्तर पे लेटा मोबाइल चला रहा था कि सामने दीवार से,जिस दीवार की ओर मेरे पैर थे और बिस्तर जिससे सटा हुआ था, एक छिपकली आ गिरी. मैंने जैसे देखा वैसे पैर समेटकर बैठ गया और उसे फुस्कारा, उसे भगाने की कोशिश की पर मजाल जो हिली भी हो. फिर क्या था मैंने उसे हटाने के लिए बिस्तर ही फटकार दिया और वो सीधे नीचे. अगले दिन भी ऐसा ही हुआ. पर इस बार वो छिपकली रात को भी आ गिरी थी बिस्तर पे. मैंने फिर उसे हटाया पर इस वक़्त मुझे थोड़ा डर था कि कहीं रात को सोते समय वो छिपकली फिर से आ गई तो. इसी डर से मैंने जो सोते समय लोवर पहने था, उसे नीचे से समेटकर एक दम कस लिया बिल्कुल चूड़ीदार जैसे. ताकि रात को छिपकली उस लोवर में घुस न जाए. बात थोड़ी अजीब और हंसी वाली थी पर डर तो लाज़मी था.
ऐसे ही वो शुरुआत के दो - तीन दिन मेरे लिए वो छिपकली का होना एक सामान्य दृश्य ही था, ऐसा तो सबके साथ होता होगा. पर अब ये मेरे लिए सामान्य नहीं था, बिल्कुल भी नहीं. जब चौथे दिन अकस्मात् ही मेरा ध्यान उस पर गया तो ये ध्यान गौर करने लायक था. क्योंकि कुछ सोचने और समझने के बाद मेरे लिए वो छिपकली का परिदृश्य सामान्य कहना अब सामान्य नहीं था. इसीलिए चौथे दिन मैंने भी उस छिपकली के साथ जुड़ने की कोशिश की, कुछ महसूस करने की कोशिश की. पहले तो मुझे ये ही समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये छिपकली क्यों इतने दिनों से बारम्बार लगातार मुझसे टकरा रही है और सबसे बड़ी बात अभी तक कमरे में जहाँ कई छिपकलियां दिखती थी, आज सिर्फ एक. एक तक तो ठीक था, पर वही एक मात्र छिपकली क्यों और वो मुझसे दूर क्यों नहीं रहती. दीवारों पे रेंगने वाली छिपकली आखिर क्यों कूद पड़ती है मेरे बिस्तर पर, क्यों? खैर मैं कोशिश कर रहा था कुछ जानने की, कुछ निष्कर्ष निकालने की.
ये चौथे दिन की ही बात है जब उससे दूर बिस्तर पे, उसकी हरकतों पे नजरें टिकाए मैं पैर समेटे बैठा था . बड़ा अजीब मंजर था मेरे लिए ये सोचना कि ये छिपकली अब कौन सा खेल खेलेगी, न जाने कौन सी कहानी रचेगी. खैर..., मैंने थोड़ी हिम्मत की और उसकी ओर थोड़ा सिर झुकाया. सिर झुकाते ही मेरे, वो छिपकली जो अब तक एकटक नजरें मेरी ओर टिकाए बैठी थी अचानक से धीरे - धीरे मेरी ओर कदम बढ़ाने लगी. मैंने तो झटक के अपने आप को पीछे कर लिया. एक पल को तो लगा जैसे वो छिपकली मुझ पर झपट्टा मारने आ रही हो. फिर मैंने थोड़ी और हिम्मत की और अपनी आँखें बड़ी करके उसकी आँखों में देखने लगा. पर मैं ये भी ध्यान रखे था कि मैं उससे उचित दूरी पर रहूँ ताकि वो मुझे काट न सके. लेकिन सच कहूँ उसे देखकर तो ऐसा लग नहीं रहा था कि वो मुझे जरा भी नुकसान पहुँचायेगी. इसलिए मैं बिना डरे उसकी आँखों में देखता रहा. उसकी आँखें भी मानो फैलती जा रही थी. वो छिपकली भी एक दम स्तब्ध, आँखों को बिना इधर - ऊधर किए उसी जगह बिल्कुल शान्त बैठी हुई थी और मुझे वही महसूस हो रहा था जैसे ये शान्ति आने वाले तूफ़ान के पहले की हो. खैर! वो तो डर था मेरा. पर मैं भी एकटक नजरों से उस छिपकली की आँखों में देखता रहा. उस छिपकली की आँखों को देखकर ऐसा लग रहा था मानो जैसे वो मेरी आँखों में अपनी ही आँखें देखने की कोशिश कर रही हो. यूं आँखों - आँखों में देखने के खेल में वो छिपकली तो टस से मस नहीं हुई पर मेरी पलकें जरूर झपक गई. पलकें झपकी तो होश आया कि मैं भी क्या पागलों जैसी हरकतें कर रहा हूँ और पीछे हट गया. फिर मैंने उसे फुस्कारने की कोशिश की ताकि वो चली जाए. पर जैसे ही मैंने उसे भगाना चाहा, उसने एक दम से बिस्तर पे खुद को सपाट कर लिया. जो सिर अभी तक मेरी आँखों से आँख मिलाने के लिए उठा हुआ था, मेरे भगाने पर वो अचानक ही नीचे हो गया था. शायद बताना चाहती थी कि अब तुम कितना बिस्तर फटकार लो कितना भी बिस्तर झटक लो, मैं अब बिस्तर से अलग नहीं होने वाली. उसके सपाट शरीर और बिस्तर पे उसकी स्थिति देखकर तो यही अनुमान लगाया जा सकता था जैसे उसने बिस्तर पे अपनी मजबूत पकड़ जकड़ कर रखी हो और चाहकर भी उसे बिस्तर से झटकाया नहीं जा सकता. खैर मैंने ज्यादा नहीं सोचा और मैंने उसे उसके हाल में छोड़ दिया. अब वो हट नहीं रही थी तो मैं ही कमरे से बाहर चला गया. बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई कि चाहकर भी मैं अपने कमरे में जैसे अपना हक न आजमा पाया. और बाहर चिड़चिड़ाती धूप में भी अपने आप को बाहर जाने के लिए मजबूर कर लिया. मैंने सोचा शायद अपने आप चली जायेगी इसलिए मैंने उसे अकेला छोड़ दिया. अब जब खुद को वो छिपकली अकेला पायेगी तो कहीं तो जायेगी न, किसी का साथ ढूंढने. बाहर शाम ढलने के बाद मैं वापस अपने कमरे में आ गया. और सच कहूँ तो मैं बस उसी छिपकली के बारे में ही सोचता रहा पूरा समय. ऐसी ऐसी कल्पनाएं कर डाली कि पूछिए मत. कहीं वो इंसान ही तो नहीं जो छिपकली बनकर आई है, पिछले जनम का कोई नाता तो नहीं, कोई जादुई या खास छिपकली तो नहीं.... वगैरह. और ये सब सोचते ही खटाक से मेरे दिमाग में जो विचार आया, वो ये था ''ये सब और कुछ नहीं, बस हमारे ज्यादा फिल्में देखना का असर है''. ऐसा मुझको कहना पड़ा क्योंकि मैं बहुत ज्यादा ही सोच रहा था. मैंने तो अपने अन्तर्मन में उस छिपकली के साथ अपनी कई अलग - अलग कहानियाँ भी रच डाली थी. तब लगा कि ये हमारी कल्पना - शक्ति भी न, हमसे क्या क्या नहीं करा सकती.
खैर मैं अब कमरे में था और नजरें उस छिपकली की तलाश में. मैंने देखा तो छिपकली बिस्तर पे नहीं थी और न ही पूरे कमरे में. कमरे में उसे न देखकर बहुत बड़ी राहत मिल गई हो जैसे मुझे. मैं एक दम से खुश हो बैठा. और वो जो मैं कहानियाँ सोच रहा था, उन्हें दिमाग के किसी कचरे में फेंककर भूल गया. भूल गया मतलब सोचना बंद कर दिया बाकि वो कहानियाँ थी तो दिमाग में ही. मैं मस्त बढ़िया खाना वाना खाकर बिस्तर पे ढेर हो गया. बस सो सकूँ आराम से तो लाइट बंद करने जा रहा था. जैसे ही उठने को किया तो बिस्तर पे मुझे अजीब हलचल दिखाई दी. मैंने देखा कि बिस्तर के ऊपर जो चादर बिछी थी, उसके नीचे कोई था. और थोड़ी देर देखा तो उसके नीचे कुछ खिसकता हुआ दिखाई दिया जैसे कोई आगे बढ़ रहा हो. मैंने झटके से चादर हटाई तो देखा ये तो वही छिपकली थी जो रोज - रोज मुझे परेशान करती है. मैंने कहा लो फिर... अब लगा कि जैसे उसे भगाऊं नहीं, बस पकड़ू और कहीं दूर फेंक आऊं. पर उसे पकड़ने की हिम्मत किसमें थी भला. पर मेरे दिमाग ने जो छिपकली को लेकर कहानियाँ उपजी थी, उन कहानियों ने बाकायदा मुझे हिम्मत जरूर दी. मैंने कहा चलो अगर ये कहानियाँ सच होना चाहती हैं तो यही सही और मैं हिम्मत करके वहीं उसी बिस्तर पे लेट गया. ना छिपकली वहां से हटी और न अबकी मैंने हटाया. बस मैं निश्चिन्त हो, कहानियों को दिमाग में लेकर सो गया. अब वो छिपकली अपनी उस जगह से मेरे पास आई होगी कि नहीं, शरीर पर चढ़ी होगी कि नहीं, या क्या किया होगा मुझे नहीं पता. पर जब मैं सुबह उठा तो वो छिपकली मेरे पास नहीं थी और न ही कमरे में. उस छिपकली को अपने कमरे में न पाकर जहाँ पहले मैं मन में आ रहे कैसे - कैसे ख्याल से, बन रही अजीब कहानियों से परेशान था तो अब वो कहानी सच नहीं होगी इस बात से परेशान था. पता नहीं क्या हो गया था मुझे? आखिर क्या चल रहा था दिमाग में? मैं पहले छिपकली को भगाना चाहता था पर अब ढूंढ रहा था. इसलिए उस छिपकली को ढूंढने के लिए और उससे मेरा नाता समझने के लिए मैं उसके नाते - रिश्तेदारों के पास गया, मतलब कमरे के बाहर जहां और भी छिपकलियाँ दिखती हैं. पर उन छिपकलियों में मुझे उस छिपकली का समझ नहीं आया कि वो इस भीड़ में है भी या नहीं. अब मैं उन बाकी छिपकलियों से तो पूछ नहीं सकता था उस छिपकली के बारे में. भला उनसे मैं क्या जान पाता. चलो कोई नहीं, उनसे तो कुछ पता नहीं चला पर छिपकलियों के बारे में कुछ जान सकूं, उनका मनोविज्ञान समझ सकूं इसलिए मैंने गूगल बाबा का सहारा लिया. पर गूगल से मुझे जो जानकारी मिली वो तो मेरे सिर के ऊपर से गई. अब क्या करूँ छिपकली का मनोविज्ञान समझने का वैज्ञानिक ढंग मेरे पल्ले नहीं पड़ा और बाकी जो जानकारी मिली, उसके शुभ - अशुभ का मुझे न मंगल समझ आया और न ही अमंगल समझ आया. और उसके बारे में जो रोचक तथ्य जानने को मिले उसकी रोचकता मुझसे तो कम ही थी क्योंकि रोचक जो मेरे साथ ह़ो रहा था, वो कुछ ज्यादा ही रोचक था. पर ये रोचक चीज, घटना मैं औरों को बताता तो लोग तो मुझे पागल समझते इसलिए वो बात मैंने अपने तक ही रखी कि वो मुझे आजकल बड़ा परेशान करती है.
उस दिन के बाद आज दूसरा दिन है जब मैंने उस छिपकली को अन्तिम बार देखा था. वही दोपहर, वही बिस्तर और वही छिपकली. बस इस बार छिपकली बिस्तर में नहीं मेरे ख्यालों में थी, मेरी सोच में थी. और इसी सोच में डूबा मैं लेटा मोबाइल ही चला रहा था कि एक पोस्ट पढ़ने को मिला. और पोस्ट गर्मी से सम्बन्धित था और उसमें जो एक बात मेरी नजरों में चढ़ गई वो बात ये थी कि इंसान हो चाहे जीव जन्तु या फिर कोई भी कीड़े मकोड़े, गर्मी में बुरा हाल उनका भी हो सकता है अर्थात गर्मी उनको भी महसूस हो सकती है. और कुछ ज्यादा नहीं पर इतना है कि जिस तरह से छिपकली को देखकर वो कहानियाँ मेरे मन में बनी थी, उसी तरह ये पढ़ने के बाद भी मैंने मन ही मन कुछ अनुमान लगाए. मैंने अपने दिमाग और मन दोनों को समझाया कि वो जो मैं छिपकली के बारे में अलग अलग परिकल्पनाएं किये जा रहा था, वो सब बस मेरे दिमाग की उपज है जो कभी भी सच नहीं हो सकती. और इस तरह से सोचने का कारण मेरा वो अनुमान था जिसमें मैंने ये निष्कर्ष निकाला कि जब हम इंसान गर्मी से आहत होकर तड़प सकते हैं तो जानवर और कोई भी जीव - जन्तु क्यों नहीं. जैसे इंसान गर्मी से बचने के लिए खुद को कहीं ठंडे माहौल में रखता है, वैसे ही जानवर, पशु - पक्षी, कीट - मकोड़े सब के सब भी तो खुद के लिए ठंडा परिवेश ढूँढ़ते होंगे ताकि वो उस गर्मी से बच सके जो उनके शरीर के तापमान के लिए जरा भी ठीक नहीं है. खैर.. मैंने इसी जगह पर उस छिपकली को रखकर देखा और अनुमान लगाया कि हो सकता कि वो छिपकली भी ऐसा ही कुछ ठंडा परिवेश ढूंढ रही हो क्योंकि गर्मी तो है और उसी गर्मी से बचने के लिए ही वह छिपकली मेरे कमरे में बार बार आ रही हो. पर ये सब सोचने के बाद भी मेरे दिमाग में कुछ गुत्थम गुत्थी चल ही रही थी, मैंने कहा अगर गर्मी से बचने की ही बात है तो वो छिपकलियाँ जो मेरे कमरे के बाहर दिखती हैं, क्या उनको गर्मी से कोई परेशानी नहीं होती. अगर होती है तो वो छिपकलियां क्यों नहीं आती मेरे कमरे में. बड़ी दुविधा थी कि मैं किस तर्क पर उन सारी कहानियों को गलत साबित करूँ जो छिपकली के बारे में सोची थी मैंने. क्योंकि अगर ऐसा न करूँ तो दिमाग मुझे ये सोचने में भी मजबूर कर देता है कि कहीं मैं दिमागी तौर से बीमार तो नहीं. और ये सोचना वाकई मेरे लिए बिलकुल ठीक नहीं है. इसलिए कैसे भी मैं इस ग़लतफहमी को दूर करना चाहता था.
फिलहाल कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ. मैंने कहा चलो उन छिपकलियों को ही देखा जाए जो बाहर गर्मी में अपने आप को तकलीफ दे रही हैं. जाकर देखा तो सब की सब छिपकलियाँ एक ही दीवार पर झुंड बनाये दिखती हैं. मैंने कहा, पता नहीं क्या बात है सब की सब एक साथ जबकि मुझे बड़ी गर्मी महसूस हो रही थी. पर मुझे पता नहीं क्या सूझी कि उनको परेशान करने के इरादे से मैंने दीवार पे हाँथ मारकर आवाज़ करने की कोशिश की. जैसे ही मेरा हाँथ उस दीवार पर स्पर्श हुआ, मैंने कुछ अलग महसूस किया. मैंने महसूस किया कि जिस दीवार पे मैं हाँथ मारकर आवाज़ करने वाला था और जिस पर वो छिपकलियाँ विराजमान थी, उस दीवार पर मेरे कमरे की अपेक्षाकृत ज्यादा नमी थी और ज्यादा ठण्डक भी. फिर कुछ और मैंने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया, मैंने बस समझ लिया कि आखिर क्यों सारी छिपकलियां उस दीवार पे थी, क्यों आखिर वो मेरे कमरे में नहीं आती जबकि पहले तो कई छिपकलियां थी मेरे कमरे पे. मैंने समझा कि जब छिपकलियां मेरे कमरे में हुआ करती थी तब मौसम ठण्ड का था पर अभी.... ,अभी तो गर्मी चल रही है. चूँकि वो दीवार जिस पर सारी छिपकलियां डेरा जमाये बैठी रहती हैं, वो तो बिलकुल आखिरी दीवार है जिससे बहता नाला भी सटा हुआ है और पीछे जो बड़ा पेड़ है उसकी छाया भी, तो जाहिर है कि उस दीवार पर ठंडक हमेशा बनी ही रहेगी. और शायद यही कारण है कि छिपकलियां उस दीवार पे ही क्यों रहती थी बजाय मेरे कमरे में रहने के. चलो ये सारा माजरा तो मुझे समझ आ चुका था, पर उस एक छिपकली का अभी तक कुछ समझ नहीं आया कि वो क्यों फिर मेरे कमरे में बार - बार नजर आ रही थी. उसका मुझे कुछ तर्क नहीं मिला पर अपने आप को इन सब कल्पनाओं से बचाने के लिए मैंने अपने आप में ही कुछ अनुमान लगा लिया. पर अनुमान लगाने के लिए भी मैंने तर्क लगाना जरुरी समझा क्योंकि अनुमान बेवजह नहीं होना चाहिए. इसलिए मैंने मन में ही यह अनुमान लगा डाला कि हो सकता है वो छिपकली अंधी हो, उसको कुछ दिखाई न देता हो. और शायद यही कारण हो उसका मेरे बिस्तर पे गिर जाना और भटककर बार - बार मेरे कमरे में आ जाना. पर ये सब सच था भी या ये बस मेरा अनुमान ही था, उसका मुझे नहीं पता. पर अपने लिए मैंने यही उचित समझा. फिर ख्याल आया शायद मेरा ये अनुमान सच हो क्योंकि उस वक़्त जब मैं उसकी आँखों में देख रहा था, उस समय उसका किसी प्रकार की प्रतिक्रिया न देना, उसका मुझसे दूर न जाना, ये सब हो सकता है ऐसा इसलिए हुआ हो क्योंकि वो छिपकली अंधी थी और मेरी मौजूदगी उसे दिखी ही न हो. और जब कुछ आहट सुनकर उसे कुछ खतरा महसूस हुआ हो तो उसने खुद को सावधान करके सपाट कर लिया हो,या ये भी हो सकता है कि डर के.
मेरा बाकी छिपकलियों के बारे में और उस एक छिपकली के बारे में जो मेरे कमरे में आ रही थी, लगाया गया अनुमान और तर्क सही भी था या नहीं मुझे बिलकुल पता नहीं. पर मैं किसी भी तरह चाहता था कि वो सब जो मैं अजीब और अवास्तविक कहानियाँ सोचे जा रहा था, उनसे मुझे छुटकारा मिल जाए और इसके लिए ये सब सोचना जरुरी था, जिसे हम आजकल अंग्रेजी भाषा का एक शब्द है 'लॉजिक', कहते हैं वो लॉजिक लगाना जरुरी था ताकि मैं उन कहानियों को झुटला सकूँ.
अब बस मैं निश्चिन्त हो गया था क्योंकि अब मैं समझ चूका था कि ये मेरी और छिपकली की कहानी नहीं थी बल्कि ये तो सिर्फ मेरी कहानी थी जिसमे मैंने खामखाह उस बेचारी छिपकली को भी शामिल कर लिया और दिमाग ने जो खेल खेला वो तो आप लोग जान ही चुके हैं ऊपर. शायद ये सब मेरे अकेले होने का नतीजा था. इसलिए कह सकता हूँ कि अपने आप को कहीं न कहीं व्यस्त रखना चाहिए और सबसे बड़ी बात ज्यादा तो बिलकुल नहीं सोचना चाहिए नहीं तो आप कब छिपकली बन जाए और छिपकली आप, पता ही नहीं चलेगा. ''

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"मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "
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1 Comments
  • Mr Bakshi
    Mr Bakshi 18 जून 2019 को 8:14 am बजे

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