हासिल-ए-कुन_Hindi Poetry_2019


ज़िन्दगी के बेहिसाब सिक्कों से,
मैंने अपने हिसाब के सिक्के चुन लिए
इन हिसाबी सिक्कों की कीमत बेहिसाब करने,
न जाने मैंने कैसे - कैसे ख़्वाब बुन लिए

वो ख़्वाब जो बुनकर कभी,
हकीकत का स्वेटर बनेगा
बस इसी स्वेटर का गर्म एहसास करने
चल दिया इरादा हासिल-ए-कुन लिए

ये हिसाबी सिक्के अपनी कीमत से,
अभी तो दूर हैं
पर मैं चल दिया हूँ,
इन सिक्कों की खनक लिए

खनक जिसकी आवाज में नाचते - गाते,
ज़िन्दगी एक - एक राह पर जोश दिलायेगी
इसी जोश के चलते चल रहा हूँ,
एक जश्न मनाती ज़िन्दगी की ललक लिए

इन हिसाबी सिक्कों की खनक,
अभी तो बस मैंने सुनी है
पर जल्द आऊंगा सामने सबके,
इस खनक की भारी गूँज लिए

गूँज जो मेरे नाम की दौलत होगी,
इन्हीं चुने हिसाबी सिक्कों की बदौलत होगी
और ये सब जब होगा, तब आऊंगा फिर,
जीने बेहिसाब, ज़िन्दगी की एक - एक बूँद लिए...
_'अंकित कुमार पंडा'

Thanks for reading 🙏🙏
"मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "
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