मोहब्बत_Love Poetry


शायद वह मोहब्बत की तहज़ीब जानता है
इसलिए वह अपनी मोहब्बत का सज़दा करता है
शायद मोहब्बत खुदाई है वह ये जानता है
इसलिए वह अपनी मोहब्बत की इबादत करता है

शायद वह जानता है,
कि मोहब्बत ही सबसे बड़ा धर्म है
इसलिए वह अपनी मोहब्बत में सुबह की अजान भी पढ़ता है
और गीता का पाठ भी करता है

शायद वह जानता है,
कि इस मोहब्बत से ही हर त्योहार मुबारक है
इसलिए तो वह ईद के चाँद में,
दिवाली की रोशनी करता है

शायद वह जानता है,
कि मोहब्बत का रंग हर रंग में शामिल है
इसलिए तो ज़िन्दगी की सफेदी में,
वह खुशियों की होली रंग - बिरंग करता है

शायद वह ये जानता है,
कि इस मोहब्बत में ही दुनिया की हर खुशी है
इसलिए अपनी मोहब्बत को खुश रख,
वह अपनी ही मोहब्बत की दुनिया मुकम्मल करता है

अपनी इस मोहब्बत में,
वह सबकी मोहब्बत का मान रखता है
खुद की मोहब्बत सामने रख,
वह अपनी मोहब्बत की पहचान मुकम्मल करता है !

हाँ! यह ज़िक्रनामा है उस मोहब्बत का
जिसे वह सुबह-ओ-शाम करता है
बचाकर दुनिया भर की नजरों से
वह दिन-रात इसकी सेवा करता है

हाँ..वह जानता है कि मोहब्बत भी एक सेवा ही है
इसीलिए तो वह अपनी मोहब्बत का बखूबी ख़्याल रखता है
और इसी ख़्याल को देख खुद मोहब्बत जिसकी मोहब्बत मांगे
वह बस इतना ही जानता है जिसे वह अपनी मोहब्बत कहता है. .


पर शायद वह यह भी जानता है
कि नफ़रत नाम की भी एक चीज होती है
जो मोहब्बत समझने के परे होती है
और इसकी शुरुआत मोहब्बत के अंत से होती है

और इसी डर के चलते....

वह हर वक़्त अपनी मोहब्बत का ज़िक्र करता है
कि उसे डर है उसकी मोहब्बत का चिराग़ न बुझ जाए
उसकी मोहब्बत वह सिर्फ अपनी मोहब्बत को देता है
कि उसे डर है उसकी मोहब्बत कहीं राधा या मीरा न हो जाए

वह अपनी मोहब्बत को अपनी हद तक रखता है
कि उसे डर है इस मोहब्बत में कोई हद पार न हो जाए
वह इस मोहब्बत में हर छोटी सी छोटी बात का ख़याल रखता है
कि उसे डर है कभी कहीं कोई बात बड़ी न हो जाए

पर साथ ही फिर उसे इस बात का भी ख़्याल है
कि मोहब्बत तो सिर्फ मोहब्बत से होती है
और जहाँ ये मोहब्बत की आँच होती है
वहाँ नफ़रत पिघलती कोई मोम होती है
ये पिघलती मोम मोहब्बत का वो एहसास होती है
जहाँ इस मोहब्बत की समझदारी कम होती है
और आजकल ऐसी मासूम मोहब्बत जरा कम होती है.

हाँ मोहब्बत..बस यही एक एहसास है
जो हर किसी का दिल जीतना जानता है
तकरार हो जाए तो मनाना जानता है
कोई गलती हो जाए तो माफ करना जानता है
मुसीबत में हाँथ बढ़ाना जानता है
किसी की कितनी भी बुरी नज़र क्यों न हो
ये एहसास  हर नज़र से आँखें चार करना जानता है
हर किसी से प्यार करना जानता है

ढाई अक्षर का ये एहसास,
जो दिल से दिल की बात करता है
एक - एक एहसास को उसी एहसास से पढ़ता है
कोई तर्क नहीं, कोई वितर्क नहीं
ये एहसास ज़िन्दगी को खुली किताब करता है
हाँ! ये मोहब्बत है, जो सिर्फ मोहब्बत करता है....!!
_'अंकित कुमार पंडा'



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"मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "
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