"ऐसा भी होता है क्या?"(किस्सा - 2)


मैं आप लोगों से कुछ कहना चाहता हूँ. कहूँ क्या? अब आप हाँ कहे या न, पर मैं तो कहूँगा जो मुझे कहना है.
तो मेरे मन में ऐसे ही एक सवाल आया था कि... ;अच्छा आप सब लोग डर से तो वाकिफ ही होंगे. है न? हाँ... तो मैं बस यही पूछना चाह रहा था कि आप लोगों को पता है 'डर क्या है?'. वैसे अगर मैं मेरी बात करूँ तो मुझे ये तो नहीं पता डर क्या है, पर हाँ...लगता जरूर है. और वो भी बहुत ज्यादा. आप लोगों को भी लगता होगा. है न?  ये जरूरी नहीं कि आप लोग बताएँ कि आप लोगों को डर लगता है या नहीं, पर मुझे पता है - लगता तो है. अब ऐसा भी नहीं है कि डरना कोई गलत बात है कि सब लोग इस बारे में बताने से हिचकिचाएं. पर फिर भी काफी हद तक हिचकिचाते हैं लोग. और देखा जाए तो सही भी है ; क्योंकि अपना - अपना डर न बताने के पीछे भी उनका अपना एक डर छुपा रहता है कि उनका डर उनकी कमजोरी है और इस कमजोरी का सबको पता नहीं चलना चाहिए. उन्हें डर रहता है कि फिर लोग उनकी कमजोरी पे हसेंगे, उनका मजाक उडायेंगे, और इन सब से ऊपर कि कोई उनकी कमजोरी का फायदा न उठा ले.
खैर! डर के मामले में मेरा मसला गम्भीर नहीं है. मैं जानता हूँ डर हमारे मन की सामान्य सी और स्वाभाविक सी प्राकृतिक भावना है. बस फर्क इतना होता है कि ये भावना हमें रास नहीं आती है. पर इसका मतलब ये नहीं कि डरना अच्छा नहीं होता है. डर के भी अपने विशेष फायदे हैं. खासकर उस मामले में जब डर अपने आप में तर्कहीन हो. इंसान इस डर के मामले में वो काम भी कर जाता है, जो वो सामान्य स्थिति में नहीं कर सकता. डर की सीमा और हद अलग - अलग लोगों में भिन्न - भिन्न होती है, पर भावना एक ही होती है. वैसे ऐसा तो नहीं लग रहा न कि जैसे डर को लेकर मैं कोई प्रवचन दे रहा हूँ. लग रहा है न... मुझे भी ऐसा ही लग रहा है. क्या करूँ फ्लो - फ्लो में बक जाता हूँ कभी - कभी. पर सही कहूँ तो मैं यहाँ 'डर क्या है?' ये जानने - बताने थोड़े आया था, मैं तो बस अपना एक किस्सा सुनाने आया था. वरना डर के बारे में जानता ही क्या हूँ जो मैं बताऊँगा. हमारे विद्वानों और वैज्ञानिकों ने पहले से बहुत कुछ बता रक्खा है हर चीज के बारे में. फिर वो भले चाहे डर ही क्यूँ न हो.
हाँ तो मै किस्से की बात कर रहा था. तो किस्सा यूँ है कि.... ; वैसे मैं किस्सा बताने से पहले ये बता दूँ किस्सा थोड़ा बचकाना है. कोई मनोरंजन या कहानी नहीं है इसमें कि आपके मन में ऊर्जा भर दे. फिर आप लोग बाद में ये न कहे कि क्या बकवास कर के गया मैं😜. पर प्लीज़ किस्सा सुनकर जरूर जाईयेगा. थोड़ा ही है, ज्यादा टाइम नहीं लगेगा 😇😇. तो चलिए अब शुरू करता हूँ.
किस्सा रात की पहर का है, जब रात पूर्णतः सन्नाटे से घिरी होती है और रात-कीड़ों की आवाज से भरी होती है. अच्छा सही - सही बताना, आप में से कितनों को  रात के अँधेरे से डर लगता है या ऐसे सन्नाटे से जहाँ आपके सिवा कोई हो न, लेकिन फिर भी आप हैरान होते हैं, डरते हैं कि कोई है तो नहीं. खैर छोड़िए! मैं आगे बताता हूँ. तो ऐसा है कि कभी - कभी रात का सफर करना पड़ता है, जिससे न चाहकर भी सन्नाटे वाली आधी रात में सुनसान सड़कों और गलियों से गुजरना पड़ता है, और खौफ से घिरी आशंकाओं से जूझना पड़ता है. ऐसे ही एक दिन रात को मैं अपने घर आ रहा था और रात काफी हो गई थी. जब ट्रेन स्टेशन पहुँची तो रात के 2 बज चुके थे. अब इतनी देर रात, ऊपर से मैं अकेला और कोई साधन भी नहीं जो सटीक मुझे मेरे घर के दरवाजे तक छोड़े. वैसे स्टेशन से मेरा घर एक या डेढ़ किमी. की दूरी पर ही है तो कौन साधन करे ,पैदल ही पहुँच जाना होता है. और पैदल ही जाता हूँ. और अब भी पैदल ही जा रहा था. ट्रेन के इंजन को पीछे छोड़ते हुए मैं आगे पैदल चल पड़ा. पैदल चलकर स्टेशन के प्लेटफार्म से पटरी - पटरी भी कुछ दूरी तय करनी पड़ती है. वो तो शुक्र है है कि ट्रेन के इंजन की लाइट दूर तक जाती है तो पटरी - पटरी जाने में कोई दिक्कत नहीं होती. फिर उसके बाद सड़क आ जाती है जिसमें आगे एक दम सीधा रस्ता जाता है मेरे घर तक. तो बस ऐसे ही रात थी, मैं अकेला, सन्नाटा भी, रात - कीडों की आवाज भी. वैसे डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि सड़को पर लगे खम्भे और उसपे लाइट भी थी😊. वैसे बता दूँ मुझको अँधेरे से डर नहीं लगता, पर कोई खतरा पास हो तो इंसान क्या कर सकता है, डरेगा ही न. और ऐसे रात के सन्नाटे में मुझे सबसे बड़ा खतरा कुत्तों का लगता है. भले जानते हो कि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं हैं. पर न भौंकने वाला ही कुत्ता काट जाए तो... तब क्या करेंगे. फिलहाल अभी मैं जिस सड़क से जा रहा था वहाँ कोई कुत्ते नहीं थे. पर जैसे - जैसे आगे बढ़ रहा था, खम्भों की लाइटें कम पड़ रहीं थी क्योंकि आगे वाले खम्भें काफी फासलों में लगे हुए थे. एक चौराहा पार करने के बाद बस पाँच मिनट और चलना था. गाना सुनते बढ़िया जा रहा था - तूने मारी इन्ट्रि़याँ रे दिल में बजे घंटियाँ.. रे टंग टंग. इतना ही सुना कि भौं - भौं की आवाज आने लगी. भौं-भौं, भौं-भौं. लगता है बेचारे उस कुत्ते को मेरी इन्ट्री नहीं पसंद आई, या फिर वो गाना -'टंग टंग टंग टंग'. वैसे डर नहीं लगता मुझे कुत्तों से. पर रात के सन्नाटे में अकेला जानकर नोच डाला तो, ,अरे भाई चिंता तो होती है न. ऐसे में तो हम भागने का रिस्क भी नहीं उठा सकते. जैसे - जैसे आगे बढ़ रहा था, उनके भौंकने की आवाज तेज हो रही थी. तेज हो भी क्यूँ न, मैं उनके करीब जो बढ़ रहा था. क्या करूँ मुझे बढ़ना ही था, घर जो पहुँचना था. उल्टे पांव वापस थोड़े लौट सकता था. एक के भौंकने की आवाज सुनकर बेचारे जो दो कुत्ते आराम से उल्टे जमीन पे लेटे सो रहे थे, वो भी आ धमके भौं-भौं करते. कसम से बता रहा उनके भौंकने की आवाज सुनकर तो मेरे गाने के बोल के मायने ही बदल गए थे. मुझे लग रहा था जैसे मैं कुत्तों का शिकार होने वाला हूँ और वे कुत्तें मुझे देख के गा रहे - तूने मारी इन्ट्रियाँ रे दिल में बजी घंटियाँ. . के टंग टंग, टंग टंग...मेरी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो रही थी.. मेरे मुँह से भी गाने के बोल यूं निकल पडे़ कि - 'इनकी न वॉरन्टियाँ हैं, न कोई गारन्टियाँ... रे भौं -भौं, भौं-भौं...😩😩,हे भगवान बचाओ! डर रहा था,पर क्या करे घर तो जाना ही था तो कदम आगे ही बढ़ रहे थे. सोच रहा था कहीं काट न लें, काट न लें. क्या करूँ, क्या करूँ, क्या करूँ, अरे क्या करूँ कैसे बचूँ....वैसे भी अब मैं उनके नजदीक आ गया था. वो तीनों कुत्तेे मुझे देखते हुए और भौंकने लगे और मुझे तीनों ने तीन तरफ से घेर लिया. हाँ अँधेरा था, पर इतना नहीं कि कुत्ते मुझे दिखे ही न. अब मैं अँधेरी रात और घिरे सन्नाटे को भूल गया था. मुझे बस इतनी खबर थी कि फिलहाल मैं इन कुत्तों से घिरा हुआ हूँ. खुद को उनके घेरे में पाके मैं तो बिल्कुल मूर्ति की तरह खड़ा हो गया. सोचा - अब जो जरा सा भी हिला तो समझ लेना ये तीनों मिलकर तूझे पूरा हिला डालेंगे. एक तो डर के मारे दिमाग भी काम नहीं कर रहा था, उसपे भी मसकरी कर रहा था मानो. मैं उनको कांपती हुई आवाज में बहुत ही फुसफुसा के बोल रहा था कि जाओ... पहले अपने एक और साथी को लेकर आओ. अभी तुम्हारा घेरा ये चक्रव्यूह कमजोर है. तुम लोगों को मुझे चारों तरफ से घेरना चाहिए और तुम हो कितने, तीन.. जाओ. तुम कुछ नहीं कर पाओगे मेरा. अगर चाहते हो कि तुम तीनों को कुछ न हो तो जाओ पहले अपनी सेना के एक और महारथी को बुलाकर लाओ. जाओ. हे...! पता नहीं क्या बक रहा था.. पर कसम से जो भी बोल रहा था, हर शब्द में मेरी जुबान लड़खड़ा रही थी मारे डर के. उस वक्त तो डर था, पर अब सोचता हूँ तो हँसी आती है 😅😅. क्या करे खुद को बचाना था, तो कुछ तो करना था. सोच रहा था कैसे कुत्ते हैं ये, यहाँ से इतनी बार गुजरा हूँ पहचानते नहीं हैं क्या कि मैं कोई अजनबी नहीं हूँ. मारे इस बात की चिड़चिड़ेपन के मैंने अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन की और अपने चेहरे पर लाइट मारी. मैंने कहा - देखो, मेरे चेहरे को देखो, देखो और पहचानो मुझे कि मैं तुम्हारे आस-पास का ही हूँ. हालाँकि कि मैं मन में ही बोल रहा था ये सब. मैं प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान, कास इन लोगों ने पहले भी मुझे यहाँ आते - जाते देखा हो दिन की रौशनी में और मुझे जान - पहचान का है जानकर छोड़ दे. पर मजाल है जो उनका भौंकना जरा भी बंद हुआ हो. मैं समझ गया कि ये मुझे नहीं जानते. अरे जब मैं नहीं जानता तो मैं उनसे कैसे उम्मीद कर सकता था कि वो भी मुझे पहचानते होंगे. मैं तिलमिला बैठा. मैंने टॉर्च की लाईट घूमाके उनकी तरफ मारी, जैसे ये कोई शस्त्र हो जो उनपे चलाने गया मैं. टॉर्च की लाइट उन पर मारते हुए मैं ऐसे कर रहा था ,जैसे बंदूक से गोली चला रहा हूँ  - ले, ले, ले और ले. मुझे नहीं पता क्या हुआ कैसे हुआ पर जैसे ही मैंने उन पर टॉर्च की लाइट मारी तो उनका भौंकना कम हो गया और वो मुझसे थोड़ा दूर भी हट गए. मैंने कहा - इन्हें क्या हो गया, भौंकना बंद. पर ऐसे - कैसे. मैंने टॉर्च की लाइट ही तो दिखाई है. इसकी जगह मैं ईंट - पत्थर भी उठा लेता तो समझ आता है कि वो भाग सकते थे मारे डर के. पर टॉर्च से क्या नुकसान पहुँचाया इनको जो पीछे हट गए. मुझे कुछ समझ नहीं आया. पर फिर भी मैं ऐसा महसूस कर रहा था, जैसे किसी वैज्ञानिक ने कोई नया आविष्कार या नई खोज कर दी हो. मुझे भी ऐसा ही लग रहा था जैसे भौंकते कुत्तों को वश में करने का मैंने भी एक तरीका ईजाद कर लिया हो. पर कोई तर्क नहीं था उस बात का और न ही कोई विज्ञान कि आखिर क्यूँ उस टॉर्च की लाइट से कुत्तों का भौंकना बंद हो गया. शायद कुछ वजह, विज्ञान, तर्क हो भी पर मुझे नहीं पता वो क्या हो सकते थे. मैं बस उसी खुशी को सीने में समाए और उस टॉर्च की लाइट कुत्तों की आँखों में मारते हुए मैं आगे बढ़ने लगा. पर सावधान भी था कि उनका शान्त होना दिखावा हो और मुझे जाते देख फिर पीछे से झपट्टा मारे. इसलिए मैं सावधान भी था. एक बात जरूर है, उनके बीच घिरकर जो डर था, वो जरूर कम हो गया था. मैं ये तो नहीं कहूँगा कि अपने दम पे वहाँ से, उन कुत्तों की चंगुल से निकल गया. बस ऐसा ही है कि टॉर्च की लाइट का शस्त्र मानकर और उसी के दम पे मैं वहाँ से निकल गया. और निकलकर मैं घर तक पहुँच गया. घर के पास क्या पहुँचा, वहाँ घर के बाहर के कुत्ते भौं - भौं करने लगे, जो पूरे दिन - पूरी रात गली में फिरकर पूरे मोहल्ले की निगरानी करते हैं. पर यहाँ मुझे डर नहीं लगा क्योंकि यहाँ के कुत्ते पहचानते जो थे मुझे और मैं भी उनसे अच्छी तरह से वाकिफ था. तो रहा सवाल कि फिर ये क्यूँ भौंक रहे थे? तो क्या है न कि घर के पास भी अँधेरा था और मेरे चेहरे पे उतनी रौशनी नहीं थी कि वो मुझे देख पहचान सके. मैं बस जमीं पर टॉर्च की रौशनी मारते चला आ रहा था. और मेरी आहट और टॉर्च की रौशनी की वजह से वो भौंकने लगे. मैंने ज्यादा नहीं सोचा, बस टॉर्च की लाइट घुमाई और अपने चेहरे पे रौशनी करी, जिसके बाद उनका भौंकना बंद हो गया और मैं बेफिक्र घर पहुँच गया.
आप लोग बोर तो नहीं हुए न 😅😅? खतम हो गया, बस इतना ही था. अब नहीं है कुछ. वैसे अगर बोर हुए भी हो तो मैं जिम्मेदार नहीं हूँ. मैंने शुरुआत में ही कहा था कि किस्सा बचकाना है, आपको इसमें कोई रस नहीं मिलेगा 😜😜. और अगर कुछ रस मिल भी गया हो तो बहुत अच्छी बात है 😇😇. वैसे कैसा लगा किस्सा? बढ़िया था न?
नहीं भी बढ़िया हो तो उससे क्या फर्क पड़ता है ; काहे कि मेरे लिए तो कारगर था न. अब जब भी मेरे साथ ऐसा होता है तो मैं ऐसा ही करता हूँ. जो कुत्ते आवारा होते हैं, हमें नहीं पहचानते, मैं झट्ट से टॉर्च की रौशनी उन पर मारता हूँ और बच के निकल जाता हूँ. और जब कुत्ते अपने हो, हमें जानते हो तो अपने चेहरे पर टॉर्च मारता हूँ. बस कोई दिक्कत नहीं. अब पता नहीं क्या वजह है या ये सब इत्तेफाकन ही हुआ मेरे साथ, मुझे नहीं पता. हालाँकि मैं उस वक्त भी ऐसा सोच रहा था और अब भी ये सोच रहा हूँ कि वाकई में ऐसा होता है क्या. आप लोग भी ऐसा कर सकते हैं जब ऐसी स्थिति आए. पर मैं इस बात की गारंटी बिल्कुल नहीं ले रहा. कल को आप भी रात को कहीं सन्नाटे में निकलें और सुनसान सड़कों में अनचाहे कुत्तों ने आपको घेर लिया और आप भी उनसे बचने के लिए वही करे, जो मैंने किया और आपके टॉर्च दिखाने के बावजूद भी उन कुत्तों ने काट लिया तो आप लोग तो मुझ पर चढ़ बैठेंगे कि अंकित ने ऐसा बोला था, अंकित ने कहा था कि ऐसा होता है, टॉर्च की लाइट मारने से कुत्ते दूर रहेंगे. हमको क्या मालूम ऐसा होना तार्किक है या नहीं. हाँ पर ये जरूर है कि मेरे मामले में ये तरीका जरूर काम आया. बाकी नहीं पता.
चलिए अब विदाई लेता हूँ. और आप का बहुत बहुत शुक्रिया जो पढ़ते - पढ़ते यहाँ तक आ गए. कम से कम आप मेरा शुक्रियादा तो क़बूल कर ही सकते हैं. 😇😇

इससे पहले एक और किस्सा शेयर किया था, वो भी पढ़ सकते हैं नीचे दिए लिंक पर जाकर. वैसे ये वाला मजेदार भी है. 😊👇 👇
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