अब मैं जिम्मेदार था /Ab Main Jimmedar Tha_Ankit AKP
नादान था
दुनिया से अनजान था;
बेखबर हर बात से
क्या झूठ, क्या सच, क्या बेईमानी,
और क्या ईमान था;
हमेशा बस मैं यही सोचता
लोगों में कैसे इतना ज्ञान था
दुनिया भर की खबर जो रखते
भला उसमें क्या ईनाम था;
अब किन-किन बातों में,
किस-किस तरह का ज्ञान था
हमारी किन-किन जरूरतों में,
कहाँ और कितना विज्ञान था
ये सब जानना,
मेरे लिए कहाँ आसान था ;
फिर पता चला यही मेरा काम था
क्योंकि लोगों का ज्ञान ही उनका अभिमान था,
और दुनिया में इसी से उनका सम्मान था;
क्या कर्म, क्या ज्ञान, क्या अभिमान और क्या सम्मान,
इन सब की चाह में, मैं खासा परेशान था
पर बढ़ती उम्र और बढ़ती जिम्मेदारियों पर अब मेरा भी ध्यान था
ये ध्यान सब, बस मेरे अस्तित्व-निर्माण का ऐलान था
क्योंकि जिम्मेदार कहलाना ही मेरी जिंदगी का मुकाम था,
इसी में मेरा अपना स्वाभिमान था,
और इसी स्वाभिमान पर करना मुझे शान था;
फिर क्या था....,
लग गया जिम्मेदारियों को समझने,उन्हें पूरा करने,
और साथ ही जिन्दगी से कुछ सीखने;
जिम्मदारियों को निभाते, उन्हें पूरी करते
अब मैं भी हो चला सयान था
जिसपे मैं खुद भी बड़ा हैरान था;
पर यही हैरानी मेरी जिन्दगी की असली हकीकत थी
और हकीकत ये थी,
कि अब समाज में मेरा भी एक खास स्थान था,
जहाँ 'जिम्मेदार' मेरा पद और वही मेेरा उपनाम था;
अब शायद वाकई अपने पैरों पर खड़ा था
और अपने पैरों पर खड़े होने के एहसास से,
मेरा कन्धा भी अब हो चला बलवान था;
बस मैं अब बड़ा खुश था
इसके अलावा और क्या चाहिए था
अब तो हासिल कर लिया अपना एक जहान था
जहाँ अब न मैं नादान था,
और न ही किसी से अनजान था
क्योंकि अब मैं जिम्मेदार था.....
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