बाजार सज गए हैं_Hindi Poetry Diwali Par_Ankit AKP


बाजार सज गए हैं
दिवाली है,
सब बस इसी में रम गए हैं
बाजार सज गए हैं!
घर की दहलीज़ की दुकानें भी,
दहलीज़ पार कर बाहर आ गए हैं
खरीददारों की हो भीड़ जहाँ,
उसी मैदान में उतरने आ गए हैं
सब बाजार का हिस्सा बनने आ गए हैं;
कोई पटाखे की लड़ी सजाए बैठा है
तो कोई झालरों, सजावट के समानों,
और कोई मिठाई की थाल सजाए बैठा है
पता चलता है,
कि बाजार अब सज गए हैं!
बाजार सज तो चुके हैं
पर श्रृंगार पूरा किए ये बाजार,
अभी अपने आप में पूरा कहाँ हैं?
लेकिन धीरे-धीरे बाजार अब पूरे होने लग गए हैं
क्योंकि खरीददार भी उस बाजार का हिस्सा बनने आने लग गए हैं,
ये जानकर कि बाजार सज गए हैं!
दिन की रोशनी में सजे बाजार के कोने-कोने
शाम ढलते ही क्रत्रिम प्रकाशों से जगमगाने लग गए हैं
और चांदनी का घूँघट ओढ़ते ही मानो,
उसके श्रृंगार में चार चांद लग गए हैं
जिससे बाजार और भी आकर्षक दिखने लग गए हैं
और लोग बाजार की ओर खिचने लग गए हैं
खरीददार लोगों के खिचावन से बाजार अपने ढांचे में ढलने लग गए हैं
शोरगुल, चिल्लम-चिल्ली, खरीदना-बेचना, भाव-तोल
हर हरकत,हर हलचल से बाजार रुबरु होने लग गए हैं
बाजार अब पूरी तरह सज गए हैं!
अब दिवाली का ऐसा खास मौका
उसमें बाजार भी अपना असर छोड़ता
तो कैसे रोकता खुद को
आखिर हमें भी पता चला है कि बाजार सज गए हैं!
उसमें अब हम भी निकले बाजार करने
पर बाजार करना तो बस बहाना हमारा,
बस चंद पटाखे और हो गया बाजार हमारा!

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 "मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "
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